स्वामी जी एक समय बचपन में २३ वर्ष की आयु मे घर त्याग कर ईश्वर की खोज मे निकल गए एवं उनके लिए स्वयंम भगवान को अंतआत्मा में आकर गीता समझाना पडृा यह बात महाराज की अपने प्रवचन में कहते है
लगभग ५२०० वर्षो के अंतराल बाद भगवान के मुुुख की वाणी की रचना स्वयंम स्वामी जी ने की हैा ओम अथवा राम किसी एक नाम का जप कर मेरे स्वरूप का ध्यान धरों मै तुम्हे जिसका नाम भजन है वह घर बैठे बैठे दे दुंगा, इसके लिए कही बाहर भटकने की जरूरत नही हैा
‘मेरे आराध्य’
महाराज जी का अनुभव में आना
जब हम ध्यान धरते है तो स्वंयम स्वामी जी कभी स्वपन में कभी अचेता अवस्था में आकर अपने द्विव्य स्वरूप का अनुभव कराते हैा आश्रम पर आने वाले अनेक भगत लोग महाराज जी की सेवा साधना कर संसार के भव बंधन से पारा होना चाहते हैा